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महापुरुषों की नजरों से……

फ़रवरी 5, 2013
30th Jan. 2013  
Jabalpur
Part 2 
 
धर्मदास की कथा 

भगवान का दर्शन एक बार हो जाये तो फिर अदर्शन हो नही सकता | एक बार भगवान का ज्ञान हो जाये तो अज्ञान नही होता | एक बार गुलाब के फूलो का ज्ञान हो जाये मैं छुपा दूँ तो उसका अज्ञान नही होता | गुलाब को जान लिया | ऐसे ही भगवान का दर्शन हो जाये तो भगवान को जान लिया | रोज-रोज भगवान का दर्शन करना पड़ता है इसका मतलब तुमने मूर्ति का दर्शन किया | अभी भगवान का दर्शन नही हुआ | कबीरजी ने ऐसी सार बात सुनाकर उसकी आँखों में झाँका | वो तो सत्पात्र था | क्या का क्या होने लगा | आज तक तो मैं मूर्ति का दर्शन करता था | भगवान का दर्शन एक बार होता है तो दूसरा उसको पर्दा कौन डाल सकता है | अज्ञान नही होता | कबीरजी जाते-जाते बोल गये अच्छा मेरा नाम कबीर है, कभी काशी आओ तो मिल लेना | धर्मदास सोचता था के मैं अभी पीछा करूं | लेकिन रेवा डिस्ट्रिक्ट में इतने खेत-खली हैं | इतनी दुकाने हैं, इतने ब्याज पे पैसे हैं | इतने गहने हैं, हीरे हैं, जवाहरात हैं | अभी इनके पीछे | समझा के अपने को ले आया तो बाकें-बिहारी के दर्शन नही कर पाया | घर में बाके-बिहारी की पूजा करे तो बोले अरे ये तो प्रभु की मूर्ति है, प्रभु आप कौन हो ? अंदर से आवाज आया संत शरण जाओ | कैसे करूं ? बोले करने वाला तो अहम होता है | अहम, बुद्धि, मन बदलता है | फिर भी जो नही बदलता है वो मैं हूँ | मुझे जानो | आपको कैसे जणू, कैसे पाऊ ? जाओ संत शरण | ऐसी आवाज आये | ६ महीने हुए ना हुए कबीरजी के पास पहुँच गए | और यू देखे मेरे आनंद स्वरूप, ज्ञान के दाता, सिद्ध पुरुष कबीर को | कबीर को ऐसे देखे मानो पी जायेगा कबीर को | इतने प्यार से देखे | 

कुछ लोग ऐसे बेवकूफ होते हैं महाराज आशीर्वाद दो | अरे बेवकूफ संत के दर्शन अभी आशीर्वाद तेरे गहरे में | नजरों से वो निहाल हो जाते हैं जो संतो की नजरों में आ जाते हैं | पहुंचे हुए संतो से आशीर्वाद माँगा थोड़े ही जाता है | चंदा को बोले चांदनी दे तो चांदनी का मजा क्या लेगा तू ? भिखमंगा होके | तू तो अभी चाँदनी देख के आन्दित हो जा | सूरज को बोले रोशनी दे तो अभी रोशनी का फायदा क्या लेगा ? गंगाजी को बोले पानी दे | अरे गंगाजी बोले मुर्ख है तू अभी मेरी ठंडक लेले तू | अभी पानी लेले | ऐसे ही जो सत पुरुष होते है, सिद्ध पुरुष होते हैं | उनको ऐसा नही बोलना चाहिए आशीर्वाद दो | जो बिजनेस मेंन होते हैं वो जुग-जुग जियो ज्यादा प्रसाद रखो तो ज्यादा अच्छा आशीर्वाद | न रखो तो थोडा आशीर्वाद और जुग-जुग जियो को तो मर जायेगा | जुग-जुग जियो कैसे जियेगा ? खुदा-ताला रोजी में बरकत दे | खुद तो ब्याज पे चल रहा है | १० साल से गूगल का धुप करते हैं और दुकान से २-३ टके पर ब्याज ले रहा है | अरे वो ईश्वर में, अल्लाह में बैठा है, बोले ना बोले उसकी निगाहों से ही दुआ बरस जाती है | नजरों से वो निहाल हो जाते हैं जो संतो की नजरों में आ जाते हैं | 
टुंक-टुंक कहे निहारो धर्मदास बहुत दिन बाद आये | हर्षित मन की ना बह्गपुरुष मोहे दर्शन दीन्हा | मन अपने तब कीन्ह विचारा इनकर जाना महा टंक सारा | मन में विचार किया के कबीरजी के पास तो महा टंक सार हैं | मर्रे रुपय, पैसे, तो कुछ भी नही | सत्य की  अशर्फी, आनंद की गिनियाँ, तिजोरी भर रही भरपूर | इतना कह मन कीन्ह विचारा | तब कबीर ओर निहारा | आओ धर्मदास पग धरो | कुहुक-कुहुक तुम काहे निहारो धर्मदास हम तुमको चिन्हा | बहुत दिन में तुम दर्शन दीन्हा | तुमको मैंने वृन्दावन में देखा के तुम सत्पात्र हो | गुरु की कृपा को पचाने वाली श्रद्धा, भक्ति के धनी  हो | इसलिए मैंने तेरे को देखा था | देख कैसे आ गया | अब क्या है | गुरूजी अब मैं यहीं रहूँगा | धर्मदास की इतनी जायदाद ये वो था | अपने रिश्तेदारों को लिख दिया जो है आपस में बाँट लेना यहाँ महा टंकसाल है | उसको छोड़कर तुम्हारे नश्वर सोना बाँटने नही आऊँगा | गए नही वापस | अमीरी की तो ऐसी की सब जर लुटा बैठे | ओर गुरुभक्ति की तो ऐसी की के गुरु के दर आ बैठे | फिर वापस गए नही | बड़े धनी थे, बड़े बुद्धिमान थे | फिर कबीरजी ने भी लुटा दिया उनको आत्म परमात्मा का ज्ञान देकर | 
मैं किसी को ये नही कहता तू दारू छोड़ दे, गुंडा-गर्दी छोड़ दे, चम्बल की घाटी छोड़ दे | तू अभिमान छोड़ दे | कुछ भी नही बोलता | मैं तो अच्छाई पकड़ा देता हूँ | अंग्रेजी रंग छोड़ दो नही | पलाश के रंग से रंग दो | वेलेंटाइन डे मत मनाओ नही, माँ-बाप का पूजन दिवस मनाओ, वेलेंटाइन डे की ऐसी-तैसी | अब माँ-बाप का दिल भी खुश बच्चों का भविष्य भी सुरक्षित, चमकता है |